कितना खून बहाएंगे... कितने और अफजल निकलेंगे ...? जेएनयू पर हमला

 जवाहर लाल नेहरू कैंपस में करीब दो सौ से तीन सौ नकाबपोशों ने हमला किया। नकाब के नाम पर दुपट्टा, गमछा या मफलर चेहरे पर लपेटे हमलावरों की भीड़ आती है। हाथों में हॉकी, रॉड, पॉलीथिन, बाल्टियों और दुपट्टों में पत्थर और ईंटें भरे हुए हैं। सबसे पहले पेरियार हॉस्टल पर हमला होता है। फिर साबरमति हॉस्टल फिर माही मांडवी इसके बाद गोदावरी। दो घंटों तक हिंसा का तांडव किया जाता है।शिक्षकों के क्वार्टर्स पर भी हमला किया जाता है। अभी तक हमलावरों की पहचान नहीं हो सकी है। व्हाट्स अप ग्रुप की चैट के स्क्रीनशॉट वायरल हो रहे हैं। ग्रुप के नाम से हमलावरों के दक्षिणपंथी या वामपंथी होने का दावा किया जा रहा है। कुछ लोग इस चैट में शामिल नंबरों के कांग्रेस के फंड ऑर्गनाइजर से जुड़े होने का दावा कर रहे हैं। ऐसे ही दावे दूसरी तरफ से भी किए जा रहे हैं।


कहां से चले कहां के लिए...


अब जरा हमले से पीछे के घटनाक्रम पर नजर डालते हैं। कुछ वक्त पहले जेएनयू की फीस को दस रुपए से बढ़ाकर 300 रुपए किए जाने से जेएनयू परिसर में हंगामा तारी है। फीस वापसी लेने के लिए हर स्तर का विरोध किया गया, विरोध के स्वर संसद तक पहुंच गए। बढ़ी हुई फीस को वापस लेने के आश्वासन के बाद भी विरोध के स्वर थमने का नाम नहीं ले रहे थे। इसके बाद नागरिकता संशोधन बिल का विरोध शुरु हो गया, बढ़ी हुई फीस का मुद्दा गायब हो गया।


नागरिकता कानून के विरोध को शुरु से ही AMU से लीड किया गया। JNU में भी उग्र विरोध प्रदर्शन हुआ मगर इसी दौरान यहां परीक्षा शुरु हो गई। वामपंथी छात्र राजनेताओं ने खुले तौर पर परीक्षाओं का बहिष्कार करने का ऐलान किया गया। आखिरकार JNU प्रशासन ने ऑनलाईन परीक्षा लेने का ऐलान किया। छात्रसंघ का विरोध जारी रहा, मगर फिर भी परीक्षाओं में छात्रों ने हिस्सा लिया। विरोध नाकाम हो गया।


बिना फीस बढ़ोत्तरी के रजिस्ट्रेशन शुरु


इसके साथ ही एक से पांच जनवरी तक शीत कालीन सत्र के लिए रजिस्ट्रेशन की घोषणा कर दी गई। ध्यान देने की बात है कि इस रजिस्ट्रेशन में फीस बढ़ोत्तरी नहीं की गई थी और किसी तरह की कोई पैनल्टी भी नहीं लगाई गई थी। मगर छात्रसंघ ने इसके बायकॉट का भी ऐलान कर दिया। JNU प्रशासन की रिपोर्ट ने साफ-साफ लिखा है कि वामपंथ गुट और छात्रसंघ ने इसके खिलाफ हिंसा शुरु कर दी। रजिस्ट्रेशन कराने के लिए कतार में लगे छात्रों के साथ मार पीट की जाती है। जेएनयू प्रशासन की रिपोर्ट में इसके पीछे सीधे तौर पर वामपंथी गुट को जिम्मेदार ठहराया गया। 


तीन जनवरी को वामपंथी गुट के छात्र सर्वर रूम पर अटैक करते हैं। तारें काट दी जाती हैं, वाईफाई सस्पेंड कर दिया जाता है। मगर रिपेयर शुरु हो जाता है। एक बार फिर JNU और ABVP के बीच मारपीट की नौबत आ गई। मगर मौके पर मौजूद सुरक्षा कर्मियों ने दोनों को हटा कर वहां से वापस भेज दिया। चार जनवरी को सर्वर पूरी तरह काम करने लगता है, रजिस्ट्रेशन शुरु हो जाता है। दोबारा से वामपंथी गुट की ओर से हिंसा शुरु हो जाती है। ये सभी कुछ जेएनयू प्रशासन की रिपोर्ट में दर्ज है।


हमले की रात, हिंसा का तांडव


इसके बाद रात को दो सौ से तीन सौ की संख्या में चेहरे पर गमछा, मफलर और दुपट्टा लपेटे गुंडे हाथों में पॉलीथिन, दुपट्टे और बाल्टियों में पत्थर भर कर जेएनयू कैंपस में घुस जाते हैं। हाथों में डंडे, रॉड लिए हमलावर कैंपस में पेरियार, साबरमति, माही, मांडवी, गोदावरी होस्टल में घुस कर मारपीट करते हैं।


काफी देर तक हमलावरों की भारी भीड़ पूरे कैंपस में हिंसा का तांडव करती है। कुल मिलाकर दो दर्जन से ज्यादा छात्र घायल हो जाते हैं। उन्हें एम्स में भर्ती किया जाता है। इस दौरान 11 ABVP के छात्र अभी तक मिसिंग हैं, उनकी कोई खबर नहीं मिल रही है। गौरतलब है कि पश्चिम बंगाल में मिसिंग हो चुके भाजपा या आरएसएस कार्यकर्ताओं की भी कई बार या तो खबर नहीं मिलती या फिर शव बरामद होते रहते हैं, वामपंथी इतिहास में ये तरीका काफी पुराना है।


हिंसा खत्म, गलीज़ सियासत शुरु


हमला खत्म होने के कुछ ही देर बाद बॉलीवुड में स्वरा भास्कर, जीशान अय्यूब के ट्वीट फ्लैश होने शुरु हो जाते हैं। पुलिस ने फिलहाल जेएनयू कैंपस को सुरक्षा की दृष्टि से घेर लिया है। तो बॉलीवुड की तरफ से पुलिस के बैरिकेट्स को तोड़कर अंदर घुसने का आह्वान किया जाता है। हालांकि सभी हमलावर मुंह छुपाए हुए थे, मगर राहुल गांधी हमले के पीछे फासिस्ट ताकतों को दोषी ठहराते हैं। आम तौर पर वे इस नाम से भाजपा के नेताओं या कार्यकर्ताओं को बुलाते हैं।


आरोप-प्रत्यारोप का दौर, कीचड़ उछालना शुरु


एक के बाद एक मुंह पर कपड़ा बांधे गुंडों की पहचान दूसरे गुट के छात्रों के हुलिए से की जाती है। एबीवीपी की नेता शांभवी और एक नकाबपोश हमलावर छात्रा के हुलिए को वायरल किया जाता है। मगर शांभवी फिलहाल एम्स में भर्ती है, परिवार वाले उसकी चिंताजनक हालत पर आंसू बहा रहे हैं। उसके पहने हुए खून से सने कपड़े और हमलावर के कपड़े आपस में मैच नहीं हो रहे हैं।


हमलावर कौन, राहुल गांधी से पूछो...!


हमलावरों ने कई को अस्पताल पहुंचा दिया है। हमलावरों के बारे में फिलहाल कोई दावा नहीं किया जा सकता। गृहमंत्री अमित शाह से लेकर भाजपा के नेता जेएनयू प्रशासन और पुलिस जांच की मांग करते हुए ट्वीट कर चुके हैं। मगर राहुल गांधी ने फासिस्ट कहते हुए सीधे-सीधे हमलावरों की पहचान का दावा करना शुरु कर दिया है।


सारे फसाने में नुकसान किसका...?


सारे फसाद की शुरुआत फीस में बढ़ोत्तरी के साथ हुई थी। उस समय दावा किया गया था कि यहां पर गरीब तबके के छात्र बिना किसी भेदभाव के अपनी काबिलियत के दम पर पढ़ाई करने आ पाते हैं। मगर इसी तबके को बिना किसी बढ़ी हुई फीस या किसी पैनल्टी के जब रजिस्ट्रेशन का मौका दिया गया तो वामपंथी गुट ने इसी तबके के साथ मारपीट करके इस रजिस्ट्रेशन का जबरन बॉयकाट करवाया गया।


हमलावर नकाब लगाए थे, पुलिस की जांच से पहले उनकी पहचान का कोई दावा नहीं किया जा सकता। मगर पहले रजिस्ट्रेशन कराने के नाम पर मार खाने वाले और बाद में हमले में पीटे गए छात्र वे ही हैं जिनकी छोटी सी ख्वाहिश थी। शांति के साथ बिना बढ़ी हुई फीस के अपना रजिस्ट्रेशन कराना। इस सारे फसाद में आखिर उनकी क्या गलती थी..?